Sunday, April 1, 2012

एक तो पैरमें घुसा, जब में चीखा
तो, बेशर्मीसे वो हँसा
मैंने भी उसे बड़ी बेरहेमीसे
बहुत बुरी तरहसे कोसा

घड़ी दो घड़ी की है ये दशा
भर जाएगा घाव ऐसा
रहेगा ना कोई उसका निशाँ
मै तो हूँ एक कंटक, उसने कहा ,
नहीं काटता, काटता है जैसे इन्सां

-भरत शाह

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