Tuesday, August 17, 2010

एक इंसान

बताओ मुजे एक इंसान, रह गया है जिसमे ईमान
हक़ कया है हमें, करें बदनाम कहके कीसीको बेईमान
जांककर गर ना देखे कभी हमारे ही गिरेबान

बकवास करतें रहते है बेवजूद हम सुबह शाम
करतें है वक्त जाया कीमती हर महफिलें मुकाम
नियत पे हमारी जन्नतमें खुद खुद्दा भी है परेशान
और दोझख में लगाता है चैनसे केहकहे शयतान
जय हिंद, जय हिंद, जय हो मेरा भारत महान
भरत शाह

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