Friday, May 4, 2012

लहर

हलकी हलकी हवासे उठती पानीकी लहर
फिर एक बार टकराई कीनारे पे बीखरे पत्थरों से,
"क्यों वक्त जाया करती है अपना,
कोई असर नहीं पडेगा तेरी मह्होबतका
उन पर, ये पत्थर है.. पत्थर l "
कहा किनारे पर खड़े एक इन्सां ने l

लहरने सूना, वो कुछ न बोली,
भीगोती रही पत्थरों को अपने प्यारसे

"कीसने बनाई ये नदीयाँ,
ये खुबसूरत नज़ारा, ये किनारा
एक शगुन हांसिल होता है यहाँ पे l"
मन ही मन वो बोला

लहरने सूना.. और वो मुस्काई..
हलकी पवन के संग
पत्थरों को चूमती
भरत शाह

No comments:

Post a Comment