Friday, December 20, 2013

भगवान

कभी नहीं सोचा था के भगवान भी एक दीन फेसबुकके "लाइक" के मोहताज़ हो जायेंगे।

क्या जरुरत है पढ़े लिखे इन्सानोंको भगवानका इस तरह इस्तेहार करनेकी?

गर हम मानते है के कुदरत के इस करिशमे का निर्माण करेनेवाला दैवत्व भगवान है तो
भरोसा रखे, आज नहीं तो कल उसको सब "लाइक" करेंगे। उसकी तस्वीरोंको "लाइक''
करनेसे गर हमारा भला य शुभ होता है तो फेसबुकके आने से पहले कौन करता था हमारा भला ?

मानाकी श्रध्धा जरूरी है आध्यात्मिकता से शान्ति पानेके लिए। लेकिन अंधश्रद्धाको उसके
जड़मूलसे हटाना सबका फ़र्ज़ है। गर वो नहीं हो सकता है तो, कम से कम उसे ज्यादा फैलाना तो
नहीं चाहीये।

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