चले तो बहुत
न छोड़े कहीं लेकीन कदमों के निशाँ
सोचकर, हो जाए शायद कोई गुमशुदा
सूना है राह से हमारी जो कोई गुजरा
कर लिया हांसील उसने अपना मूकाँ
ये कैसे हुआ ?पूछा तो उन्होंने कहा
पता पहलेसे था हमें, जाना था कहाँ
भरत शाह
न छोड़े कहीं लेकीन कदमों के निशाँ
सोचकर, हो जाए शायद कोई गुमशुदा
सूना है राह से हमारी जो कोई गुजरा
कर लिया हांसील उसने अपना मूकाँ
ये कैसे हुआ ?पूछा तो उन्होंने कहा
पता पहलेसे था हमें, जाना था कहाँ
भरत शाह
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