क़र्ज़ होता है हम पर उस माँ का जो हमें जीवन देती है और उसको जारी रखने के लिए जान भी देने तैयार रहती है
क़र्ज़ होता है हम पर उस पिताका जो हमारा जतन करता है और जीनेकी राह दिखाता है
क़र्ज़ होता है हम पर उस मिट्टीका, उस देशका जिसकी हवाओमे हम साँसे लेते है, जिसकी नदीयोंसे हमारी प्यास बुज़ाते है, जिसकी फसलोंसे ताकत हांसील करते है; जो मिट्टी कर्मभूमी बनकर हमारे खानदान को आगे बढानेका हौसला देती है, मौक़ा देती है
है कोई ऐसा गुरु, संत, साधू, स्वामी, शेख, महंत, मौलवी, मुनी, महाराज, इमाम, प्रीस्ट, पादरी, पेस्टर, आचार्य, आयातौला या जो भी, जो ये सब करता है ओर कर सकता है ?
Saturday, March 3, 2012
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Very well written, Bharatbhai ...
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