चोराहे पे बत्ती हरी हुई l
 सडककी उस पार जाने के लिये मेरे कदम उठे l
 मैंने देखा एक वृद्धाने भी, हाथमे छडी लिए, सड़क पार करने के लिए कदम उठाये l
 मेरे पेरों में जल्दी थी, उसके पेरों में नरमी l
 बत्ती लाल होनेसे पहले बुड्ढी फासला तय नहीं कर पायेगी, मैंने सोचा l
 बस, ऐसे ही मेरा हाथ बढ़ा उसकी तरफ, सहायता करनेकी उम्मीदसे l
 'शुक्रिया, बेटे...मैं पहुँच जाउंगी.. तुम्हे देर हो जाएगी" 
सिर्फ एक क्षण के  लिए उसके कमजोर पैर रुके l छडी को दाहीने हाथसे बाये हाथमे ली l      
 "जीते रहो... बड़ी भाग्यवान है तुम्हारी माँ l " दाये हाथको उठाकर वो बोली l 
मेरे कदम आगे बढे l  
लेकीन, उनमे वो वृद्धाके आशीर्वचनों का बोज़ उठानेकी ताकत न थी l   
 भरत शाह
 
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